फाजिल्का – सरकार का पराली ना जलाने की कोशिश नाकाम होती नजर आ रही

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       सरकार द्वारा किसानों को पराली को ना जलाने के लिए जागरूकता लाने के जहां काफी प्रयास किए जा रहे हैं वहीं जमीनी स्तर पर य प्रयास विफल होते नजर आ रहे हैं क्योंकि सरकार द्वारा पराली को खेतों में ही नष्ट करने के लिए किसानों को किसी तरह की कोई मशीनरी तक उपलब्ध नहीं करवाई जा रही जिसके चलते किसानों को मजबूरी में अपने खेतों में खड़ी धान  की पराली को आग लगानी पड़ रही है ।

        और यह सिलसिला पिछले लंबे समय से चल रहा है और यह सिर्फ फाजिल्का में ही नहीं पंजाब भर में किसानों द्वारा धान की पराली को आग लगाई जा रही है व्ही फाजिल्का की सरहद पर बसे गांव शमशाबाद गागन के कावा वाली और करीब आधा दर्जन गांवों के किसानों द्वारा अपने खेतों में खड़ी धान की पराली को जलाया जा रहा है और यहां के किसानों का कहना है कि उनके पास इसके सिवा कोई चारा नहीं है और पराली को आग लगाना उनकी मजबूरी है ।
 
        जहां अपने खेतों में खड़ी धान की पराली को आग लगा रहे किसानों ने बताया कि आज तक सरकार द्वारा उन्हें पराली को खेतों में नष्ट करने के लिए किसी तरह की मशीनरी तक उपलब्ध नहीं करवाई गई उन्होंने कहा कि व छोटे-छोटे किसान है जिनमें कोई दो या 3 या 5 एकड़ तक जमीन के मालिक हैं और वह इतनी महंगी मशीनरी तक खरीद नहीं सकते वहीं उन्होंने कहा कि अगर कोई छोटा किसान मशीनरी को खरीदना भी चाहे तो उसे यह कहकर वापस मोड़ दिया जाता है कि इस मशीनरी पर सब्सिडी खत्म कर दी गई है उन्होंने बताया कि वह यह मशीनें लेने के लिए कई बार फाइलें तक भर चुके हैं लेकिन उन्हें हर बार इन पर सब्सिडी ना होने की बात कहकर वापस मोड़ दिया जाता है उन्होंने कहा कि उनके गांव में सरकारी सुसाइटीया तक बनी है लेकिन इन सोसायटीयों में भी कोई खेती औजार तक नहीं है उन्होंने कहा कि अगर वह पराली को नहीं जलाते तो अगली फसल की बिजाई करने के लिए उनकी जमीन तैयार नहीं होती है उन्होंने कहा कि सरकार या तो उनके खेतों में खड़ी धान की पराली को बिना जलाए ही अगली फसल के लिए खेत को तैयार करके दिखाएं और या फिर पराली खुद उठा ले जिसके लिए वह 4 हज़ार रूपये पर एकड़ के हिसाब से देने को भी तैयार हैं अगर ऐसा नहीं होता है तो उन्हें मजबूरी में पराली को जलाना ही पड़ेगा उन्होंने कहा कि वहीं किसानों को अपनी फसल को बेचने के लिए भी मंडियों में रूलना पड़ रहा है और 10 10 दिन तक उनकी फसल की ख़रीद तक नहीं होती और सरकार द्वारा अगर उनकी फसलों का कुछ रेट बढ़ाया भी जाता है तो सरकार खाद या डीजल की कीमतें बढ़ाकर उसकी कसर निकाल लेती है उन्होंने कहा कि थोड़े समय में ही 40 रूपये प्रति लीटर बिकने वाला डीजल भी 70 रूपये तक पहुंच चुका है और उन्हें खेती के लिए मशीनरी व खाद पर मिलने वाली सबसिडी भी नहीं मिलती और सरकार द्वारा किए जाने वाले सभी दावे खोखले साबित हो रहे हैं उन्होंने कहा कि सरकार के पास भी इसका कोई हल नहीं है इसलिए वह पराली को आग लगाने को मजबूर हैं ।